हिसार|रामपाल हिंदू धार्मिक परंपराओं के खिलाफ था। इस लिए गुरु दीक्षा देने से पहले उसने अपने ग्यारह नियम बनाए थे। इसमें व्रत रखने से मना करने के साथ किसी की मौत होने पर पिंड भरवाने तक रोक लगा रखी थी। यहां तक घर में किसी प्रकार हवन यज्ञ और धार्मिक अनुष्ठान करने तक की रोक थी। यदि इनमें से एक भी नियम कोई साधक तोड़ता है तो उसे नाम रहित कर दिया जाता था।
रामपाल के सतलोक आश्रम में कोई भी नया व्यक्ति आता था तो उससे पहले दीक्षा ली या नहीं उसके बारे में पूछा जाता। दीक्षा लेने वाला ही आश्रम के अंदर जा सकता था। दीक्षा लेने की हां भरने के बाद वह आश्रम के अंदर जा सकता था। वहां उससे एक फार्म भरवाया जाता था। इसमें फार्म नंबर, व्यक्ति का नाम, पिता का नाम, आयु, पता, फोन नंबर देना होता था। इसमें दीक्षा लेने वाले के प्रथम उपदेश की तिथि लिखी जाती। उसके बाद हाजरी दो, तीन और चार होगी। आश्रम में आने वाले व्यक्ति को इसके बाद सरनाम की तिथि दी जाती थी। यह रिकार्ड आश्रम में आने वाले हर व्यक्ति का हैं।
यह हैं प्रमुख नियम :
- हुक्का, शराब, मांस, तंबाकू, सिगरेट, हुलांस सूंघना, अंडा, सूल्फा, अफीम, गांजा और अन्य नशीली वस्तुओं के सेवन से दूरी।
- किसी प्रकार का व्रत, तीर्थ, गंगा स्नान आदि नहीं करना।
- अन्य किसी देवी देवता की पूजा नहीं करनी है।
- यदि किसी की मौत हो जाती है तो उसके फूल आदि कुछ नहीं उठाने हैं, ना पिंड भरवाने हैं, ना तेरहवीं, छह माही, बरसोदी, पित्र-पूजा, कोई भी समाधि पूजना, श्रद्ध निकालना आदि कुछ नहीं करना है।
- ऐसे व्यक्ति का झूठा नहीं खाना जो नशीले पदार्थो का सेवन करता हो।
- जुआ, ताश कभी नहीं खेलना है।
- किसी प्रकार के खुशी के अवसर पर नाचना व अश्लील गाने गाना सख्त मना है।
- अपने गुरुदेव की आज्ञा के बिना घर में किसी प्रकार का यज्ञ, हवन, धार्मिक अनुष्ठान नहीं करवाना है।
- छुआछुत नहीं करना है।
- दहेज लेना व देना कुरीति है तथा मानव मात्र की अशांति का कारण है।
- वास्तुकला या ज्योतिष आदि के चक्र में नहीं पड़ना है, प्रभु पर विश्वास रखें।
रामपाल के सतलोक आश्रम में कोई भी नया व्यक्ति आता था तो उससे पहले दीक्षा ली या नहीं उसके बारे में पूछा जाता। दीक्षा लेने वाला ही आश्रम के अंदर जा सकता था। दीक्षा लेने की हां भरने के बाद वह आश्रम के अंदर जा सकता था। वहां उससे एक फार्म भरवाया जाता था। इसमें फार्म नंबर, व्यक्ति का नाम, पिता का नाम, आयु, पता, फोन नंबर देना होता था। इसमें दीक्षा लेने वाले के प्रथम उपदेश की तिथि लिखी जाती। उसके बाद हाजरी दो, तीन और चार होगी। आश्रम में आने वाले व्यक्ति को इसके बाद सरनाम की तिथि दी जाती थी। यह रिकार्ड आश्रम में आने वाले हर व्यक्ति का हैं।
यह हैं प्रमुख नियम :
- हुक्का, शराब, मांस, तंबाकू, सिगरेट, हुलांस सूंघना, अंडा, सूल्फा, अफीम, गांजा और अन्य नशीली वस्तुओं के सेवन से दूरी।
- किसी प्रकार का व्रत, तीर्थ, गंगा स्नान आदि नहीं करना।
- अन्य किसी देवी देवता की पूजा नहीं करनी है।
- यदि किसी की मौत हो जाती है तो उसके फूल आदि कुछ नहीं उठाने हैं, ना पिंड भरवाने हैं, ना तेरहवीं, छह माही, बरसोदी, पित्र-पूजा, कोई भी समाधि पूजना, श्रद्ध निकालना आदि कुछ नहीं करना है।
- ऐसे व्यक्ति का झूठा नहीं खाना जो नशीले पदार्थो का सेवन करता हो।
- जुआ, ताश कभी नहीं खेलना है।
- किसी प्रकार के खुशी के अवसर पर नाचना व अश्लील गाने गाना सख्त मना है।
- अपने गुरुदेव की आज्ञा के बिना घर में किसी प्रकार का यज्ञ, हवन, धार्मिक अनुष्ठान नहीं करवाना है।
- छुआछुत नहीं करना है।
- दहेज लेना व देना कुरीति है तथा मानव मात्र की अशांति का कारण है।
- वास्तुकला या ज्योतिष आदि के चक्र में नहीं पड़ना है, प्रभु पर विश्वास रखें।
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