तय कार्यक्रम के अनुसार गोडसे और आप्टे दिल्ली पहुंचे। तो उन्हें करकरे ने बताया कि हत्या के लिए कोई पिस्तौल नहीं मिल पाई है। यह जानकर गोडसे और आप्टे बहुत मायूस हुए, जिसके बाद गोडसे ने तरकीब सुझाई कि हम भोपाल जाकर पिस्तौल ले आएंगे।
�गोडसे और आप्टे रेल से उसी दिन भोपाल निकल गए। वहां वह अपने एक मित्र से मिले जिसने उन्हें एक सेमी-ऑटोमैटिक पिस्तौल (बैरेटा) मुहैया कराई। दोनों 29 तारीख को फिर दिल्ली पहुंच गए।
दिल्ली लौटने के बाद गोडसे और आप्टे दिल्ली के कनॉट प्लेस स्थित मरीना होटल में ठहरे। उन्होंने होटल में अपना नाम एम देशपांडे और एस देशपांडे लिखा था। जबकि करकरे अपने एक और साथी के साथ चांदनी चौक के एक होटल में ठहरे थे।
30 जनवरी को दोपहर करीब 3 बजे गोडसे, आप्टे और करकरे बिड़ला हाउस के लिए निकले। गोडसे ने आप्टे और करकरे से कहा कि पहले वो हाउस में घुसेगा, बाद में वो दोनों आएंगे। गोडसे जब बिड़ला हाउस पहुंचा तो वहां कुछ खास तलाशी नहीं हो रही थी, जिस कारण वह आराम से पिस्तौल लेकर अंदर घुस गया।
कुछ देर बाद आप्टे और करकरे भी आकर उसके पास खड़े हो गए। गोडसे 30 जनवरी को दोपहर 12 बजे बिड़ला हाउस पहुंचा क्योंकि वह भी व्यक्तिगत तौर पर उस जगह को देखना चाहता था। तब गांधी जी के साथ केवल सरदार पटेल और उनकी पोती थी। वह चाहता तो तब भी गांधी जी को मार सकता था और वहां से भाग सकता था पर उसने ऐसा नहीं किया।
�गोडसे और आप्टे रेल से उसी दिन भोपाल निकल गए। वहां वह अपने एक मित्र से मिले जिसने उन्हें एक सेमी-ऑटोमैटिक पिस्तौल (बैरेटा) मुहैया कराई। दोनों 29 तारीख को फिर दिल्ली पहुंच गए।
दिल्ली लौटने के बाद गोडसे और आप्टे दिल्ली के कनॉट प्लेस स्थित मरीना होटल में ठहरे। उन्होंने होटल में अपना नाम एम देशपांडे और एस देशपांडे लिखा था। जबकि करकरे अपने एक और साथी के साथ चांदनी चौक के एक होटल में ठहरे थे।
30 जनवरी को दोपहर करीब 3 बजे गोडसे, आप्टे और करकरे बिड़ला हाउस के लिए निकले। गोडसे ने आप्टे और करकरे से कहा कि पहले वो हाउस में घुसेगा, बाद में वो दोनों आएंगे। गोडसे जब बिड़ला हाउस पहुंचा तो वहां कुछ खास तलाशी नहीं हो रही थी, जिस कारण वह आराम से पिस्तौल लेकर अंदर घुस गया।
कुछ देर बाद आप्टे और करकरे भी आकर उसके पास खड़े हो गए। गोडसे 30 जनवरी को दोपहर 12 बजे बिड़ला हाउस पहुंचा क्योंकि वह भी व्यक्तिगत तौर पर उस जगह को देखना चाहता था। तब गांधी जी के साथ केवल सरदार पटेल और उनकी पोती थी। वह चाहता तो तब भी गांधी जी को मार सकता था और वहां से भाग सकता था पर उसने ऐसा नहीं किया।
गांधी हत्या के बाद भागा यह था नाथूराम का अगला कदम
वैसे तो गांधी जी हमेशा से ही वक्त के पाबंद थे और प्रार्थना सभा में वह हमेशा 5 बजे पहुंच जाते थे। पर 30 जनवरी 1948 की शाम को सरदार पटेल से बात करते हुए उन्हें पता ही नहीं चला और बहुत देर हो गई थी।
उस दिन जब वह आभा और मनु के साथ प्रार्थना सभा के लिए निकले तो पूरा मैदान घूम कर आने की बजाय वह मैदान पार कर लोगों के बीच में से होते हुए प्रार्थना सभा की ओर जाने लगे।
वह जैसे ही लोगों की भीड़ की ओर बढ़ रहे थे गोडसे से उनकी दूरी कम होती जा रही थी। जब गांधी जी गोडसे के सामने पहुंचे तो उसने उन्हें प्रणाम किया। देर होती देख आभा ने गोडसे से कहा कि भईया रास्ता दीजिए, बापू को पहले ही देर हो चुकी है।
इस बीच जब तक कोई कुछ समझ पाता गोडसे ने आभा को धक्का देकर पीछे किया और सामने से गांधी जी के सीने पर तीन गोलियां दाग दीं। इसके बाद वहां पहले तो किसी को कुछ समझ नहीं आया फिर अफरा-तफरी की स्थिति बन गई। पर गोडसे भागने की बजाए अपना हाथ ऊपर कर पुलिस को बुलाने लगा।
जब भीड़ में मौजूद पुलिस उसे दिखी तो उसने उन्हें आवाज दी और अपनी पिस्तौल पुलिस को सौंप दी। शाम 5:45 पर आकाशवाणी ने गांधी के निधन की सूचना देश को दी।
उस दिन जब वह आभा और मनु के साथ प्रार्थना सभा के लिए निकले तो पूरा मैदान घूम कर आने की बजाय वह मैदान पार कर लोगों के बीच में से होते हुए प्रार्थना सभा की ओर जाने लगे।
वह जैसे ही लोगों की भीड़ की ओर बढ़ रहे थे गोडसे से उनकी दूरी कम होती जा रही थी। जब गांधी जी गोडसे के सामने पहुंचे तो उसने उन्हें प्रणाम किया। देर होती देख आभा ने गोडसे से कहा कि भईया रास्ता दीजिए, बापू को पहले ही देर हो चुकी है।
इस बीच जब तक कोई कुछ समझ पाता गोडसे ने आभा को धक्का देकर पीछे किया और सामने से गांधी जी के सीने पर तीन गोलियां दाग दीं। इसके बाद वहां पहले तो किसी को कुछ समझ नहीं आया फिर अफरा-तफरी की स्थिति बन गई। पर गोडसे भागने की बजाए अपना हाथ ऊपर कर पुलिस को बुलाने लगा।
जब भीड़ में मौजूद पुलिस उसे दिखी तो उसने उन्हें आवाज दी और अपनी पिस्तौल पुलिस को सौंप दी। शाम 5:45 पर आकाशवाणी ने गांधी के निधन की सूचना देश को दी।
'हां मैंने किया है उनका वध'
27 मई को इस मामले की कार्रवाई शुरू हुई। अदालत की पूरी कार्रवाई के दौरान एक बार भी गोडसे ने अपना बचाव नहीं किया और स्वीकार किया कि उसने गांधी को मारा है।
8 नवंबर 1949 को गोडसे को फांसी की सजा सुनाई गई। 15 नवंबर 1949 को नारायण आप्टे के साथ उसे फांसी दे दी गई। इस मुकदमे में नाथूराम गोडसे सहित आठ लोगों को हत्या की साजिश में आरोपी बनाया गया था। इन आठ लोगों में से तीन आरोपियों शंकर किस्तैया, दिगम्बर बड़गे, विनायक दामोदर सावरकर बाद में रिहा कर दिए गए।
दिगम्बर बड़गे को सरकारी गवाह बनने के कारण बरी कर दिया गया। शंकर किस्तैया को उच्च न्यायालय में अपील करने पर माफ कर दिया गया। विनायक दमोदर सावरकर के खिलाफ़ कोई सबूत नहीं मिलने की वजह से अदालत ने जुर्म से मुक्त कर दिया।
8 नवंबर 1949 को गोडसे को फांसी की सजा सुनाई गई। 15 नवंबर 1949 को नारायण आप्टे के साथ उसे फांसी दे दी गई। इस मुकदमे में नाथूराम गोडसे सहित आठ लोगों को हत्या की साजिश में आरोपी बनाया गया था। इन आठ लोगों में से तीन आरोपियों शंकर किस्तैया, दिगम्बर बड़गे, विनायक दामोदर सावरकर बाद में रिहा कर दिए गए।
दिगम्बर बड़गे को सरकारी गवाह बनने के कारण बरी कर दिया गया। शंकर किस्तैया को उच्च न्यायालय में अपील करने पर माफ कर दिया गया। विनायक दमोदर सावरकर के खिलाफ़ कोई सबूत नहीं मिलने की वजह से अदालत ने जुर्म से मुक्त कर दिया।
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