वह एक ऐसा व्यक्ति था जो महात्मा गांधी को अपना आदर्श मानता था और उनके दिखाए हुए रास्ते पर चलने वाला था। वो छुआछूत और जात-पात के भेदभाव को नहीं मानता था। वह नाथूराम गोडसे था।
अगर वह ऐसा था तो उसने महात्मा गांधी क्यों मारा? उसे जैसा हिंदू कट्टरपंथी बताया गया क्या वह सच में वैसा था? क्या गांधीजी को मारना एक सनकी या पागल आदमी का काम था?
आखिर क्यों राष्ट्रपिता को मौत के घाट उतारने का ख्याल नाथूराम के मन में आया? गांधीजी को गोली मारने के बाद क्यों गोडसे वहां से नहीं भागा और उसने खुद को क्यों पुलिस के हवाले कर दिया? ऐसे ही कई सवाल हैं जिनके जवाब खोजने की कोशिश हमने की है।
अगर वह ऐसा था तो उसने महात्मा गांधी क्यों मारा? उसे जैसा हिंदू कट्टरपंथी बताया गया क्या वह सच में वैसा था? क्या गांधीजी को मारना एक सनकी या पागल आदमी का काम था?
आखिर क्यों राष्ट्रपिता को मौत के घाट उतारने का ख्याल नाथूराम के मन में आया? गांधीजी को गोली मारने के बाद क्यों गोडसे वहां से नहीं भागा और उसने खुद को क्यों पुलिस के हवाले कर दिया? ऐसे ही कई सवाल हैं जिनके जवाब खोजने की कोशिश हमने की है।
ये है गांधी को मारने की असली वजह
नाथूराम गोडसे एक पढ़ा-लिखा व्यक्ति था। वह अपना खुद का अखबार निकालता था, जिसका नाम 'अग्रणी' था। नाथूराम गोडसे का जन्म 19 मई 1910 को पुणे के चित्पावन ब्राह्मण परिवार में हुआ था। गोडसे के पिता विनायक वामनराव गोडसे पोस्ट ऑफिस में काम करते थे और माँ का नाम लक्ष्मी था।
नाथूराम एक हिंदूवादी कार्यकर्ता और पत्रकार था। वह हिंदूवादी ज़रूर था पर वह हिन्दू धर्म में मौजूद बुराइयों जैसे जाति के आधार पर भेदभाव और छुआछूत आदि का विरोधी था। यह बात उसने कोर्ट में दिए गए आखिरी बयान में कही थी। गोडसे ने आजादी के वक्त विभाजन के बाद आए हिंदू शरणार्थियों के साथ भी काम किया था।
उसी दौरान उसे लगने लगा कि विभाजन के लिए जिन्ना की मुस्लिम लीग और कांग्रेस दोनों जिम्मेदार थे। गोडसे मानता था कि कांग्रेस का कोई भी फैसला गांधी के बिना नहीं हो सकता। लेकिन हत्या की वजह इतनी भर नहीं थी।
कहा जाता है कि गोडसे ने गांधीजी की हत्या करने का आखिरी फैसला 13 जनवरी 1948 को लिया था। इसकी वजह भी पाकिस्तान था। दरअसल विभाजन के बाद पाकिस्तान ने 55 करोड़ रुपए मांगे थे।
भारत सरकार ने पहले तो इसे देने से इंकार कर दिया। लेकिन गांधीजी के दबाव में यह रुपए पाकिस्तान को दिए गए। इस बात ने हिंदूवादियों को नाराज कर दिया। गोडसे उनमें से एक था।
नाथूराम एक हिंदूवादी कार्यकर्ता और पत्रकार था। वह हिंदूवादी ज़रूर था पर वह हिन्दू धर्म में मौजूद बुराइयों जैसे जाति के आधार पर भेदभाव और छुआछूत आदि का विरोधी था। यह बात उसने कोर्ट में दिए गए आखिरी बयान में कही थी। गोडसे ने आजादी के वक्त विभाजन के बाद आए हिंदू शरणार्थियों के साथ भी काम किया था।
उसी दौरान उसे लगने लगा कि विभाजन के लिए जिन्ना की मुस्लिम लीग और कांग्रेस दोनों जिम्मेदार थे। गोडसे मानता था कि कांग्रेस का कोई भी फैसला गांधी के बिना नहीं हो सकता। लेकिन हत्या की वजह इतनी भर नहीं थी।
कहा जाता है कि गोडसे ने गांधीजी की हत्या करने का आखिरी फैसला 13 जनवरी 1948 को लिया था। इसकी वजह भी पाकिस्तान था। दरअसल विभाजन के बाद पाकिस्तान ने 55 करोड़ रुपए मांगे थे।
भारत सरकार ने पहले तो इसे देने से इंकार कर दिया। लेकिन गांधीजी के दबाव में यह रुपए पाकिस्तान को दिए गए। इस बात ने हिंदूवादियों को नाराज कर दिया। गोडसे उनमें से एक था।
जब गोडसे ने लिया गांधी को खत्म करने का प्रण
गांधी हत्याकांड की जांच कर रहे कपूर कमिशन ने लिखा है कि 30 जनवरी से पहले भी गांधी जी को मारने के प्रयास हुए थे। 20 जनवरी 1948 को ही प्रार्थना सभा से करीब 75 फीट दूर एक बम फेंका गया था।
इस कांड के दौरान मदनलाल पाहवा नाम का एक व्यक्ति गिरफ्तार किया गया था, जबकि 6 अन्य लोग टैक्सी से भाग गए थे। गांधी जी को मारने की 1934 से यह पांचवीं कोशिश थी।
कहा जाता है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कायर्कताओं में से कुछ इस काम को अंजाम देना चाहते थे। लेकिन इस नाकाम कोशिश के बाद नाथूराम ये जिम्मा अपने सर पर लिया।
उसने नारायण आप्टे और विष्णु रामकृष्ण करकरे के साथ पुणे में 30 जनवरी के अपने प्लान को पूरा करने के लिए योजना बनाई। इस योजना के तहत करकरे ने पहले ही दिल्ली पहुंचकर माहौल का जायजा लिया फिर 27 जनवरी को बंबई (अब मुंबई) से विमान आप्टे और गोडसे दिल्ली पहुंचे।
इस कांड के दौरान मदनलाल पाहवा नाम का एक व्यक्ति गिरफ्तार किया गया था, जबकि 6 अन्य लोग टैक्सी से भाग गए थे। गांधी जी को मारने की 1934 से यह पांचवीं कोशिश थी।
कहा जाता है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कायर्कताओं में से कुछ इस काम को अंजाम देना चाहते थे। लेकिन इस नाकाम कोशिश के बाद नाथूराम ये जिम्मा अपने सर पर लिया।
उसने नारायण आप्टे और विष्णु रामकृष्ण करकरे के साथ पुणे में 30 जनवरी के अपने प्लान को पूरा करने के लिए योजना बनाई। इस योजना के तहत करकरे ने पहले ही दिल्ली पहुंचकर माहौल का जायजा लिया फिर 27 जनवरी को बंबई (अब मुंबई) से विमान आप्टे और गोडसे दिल्ली पहुंचे।
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